Saturday, November 29, 2014

बाह्य प्राणायाम(Bahya pranayam)


१.  सिद्धासन या पद्मासन में विधिपूर्वक बैठकर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति बहार निकाल दीजिये। 
२. श्वास बाहर निकालकर मूलबंध, उड्डीयान बंध व जालन्धर बन्ध लगाकर श्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोककर रखें। 
३.  जब श्वास लेने की इच्छा हो तब बन्धो को हटाते हुए धीरे-धीरे श्वास लीजिए। 
४.  श्वास भीतर लेकर उसे बिना रोके ही पुनः पूर्ववत् श्वसन क्रिया द्वारा बाहर निकाल दीजिये। इस प्रकार इसे ३ से लेकर २१ बार तक कर सकते हैं। 

संकल्प: 
       इस प्राणायाम में भी उक्त कपालभाति के समान श्वास को बाहर फेंकते हुए समस्त विकारों, दोषों को भी बाहर फेंका जा रहा है इस प्रकार की मानसिक चिन्तन धारा बहनी चाहिए। विचार-शक्ति जितनी अधिक प्रबल होगी समस्त कष्ट उतनी ही प्रबलता से दूर होंगे। 
लाभ:
      यह हानिरहित प्राणायाम है। इससे मन की चञ्चलता दूर होती है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है। उधर रोगों में लाभप्रद है। बुद्धि सूक्ष्म व तीव्र होती है। शरीर का शोधक है। वीर्य की उधर्व गति करके स्वप्न-दोष, शीघ्रपतन आदि धातु-विकारों की निवृत्ति करता है। बाह्य प्राणायाम करने से पेट के  सभी अवयवों पर विशेष बल पड़ता है तथा प्रारम्भ में पेट के कमजोर या रोगग्रस्त भाग में हल्का दर्द का भी अनुभव होता हैं। अतः पेट को विश्राम तथा आरोग्य देने के लिए त्रिबन्ध पूर्वक यह प्राणायाम करना चाहिए। 
       






    

No comments:

Post a Comment