विधिः
यह मुद्रा कनिष्ठा, अनमिका तथा अंगुष्ठ के अग्रभागों परस्पर मिलाने से बनती है। शेष दो अंगुलियाँ सीधी रखनी चाहिए।
लाभ:
इस मुद्रा से प्राण की सुप्त शक्ति का जागरण होता है, आरोग्य,स्फूर्ति एवं ऊर्जा का विकास होता है। यह मुद्रा आँखों के दोषो को दूर करता है एवं नेत्र की ज्योति बढाती है और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढाती है। विटामिनो की कमी दूर करती है तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है। अनिंद्रा में इसे गयान मुद्रा के साथ करने से लाभ होता है।
यह मुद्रा कनिष्ठा, अनमिका तथा अंगुष्ठ के अग्रभागों परस्पर मिलाने से बनती है। शेष दो अंगुलियाँ सीधी रखनी चाहिए।
लाभ:
इस मुद्रा से प्राण की सुप्त शक्ति का जागरण होता है, आरोग्य,स्फूर्ति एवं ऊर्जा का विकास होता है। यह मुद्रा आँखों के दोषो को दूर करता है एवं नेत्र की ज्योति बढाती है और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढाती है। विटामिनो की कमी दूर करती है तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है। अनिंद्रा में इसे गयान मुद्रा के साथ करने से लाभ होता है।
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