वायु मुद्रा: तर्जनी अंगुली को अंगुष्टो के मूल में लगाकर अंगूठे को हल्का दबाकर रखने से यह वायु मुद्रा बनती है (तर्जनी अंगुली को अंगुष्टो से दबाकर भी ये मुद्रा बनती है)शेष तीनो अंगुलियों को सीधा रखनी चाहिए।
Saturday, February 21, 2015
Friday, February 20, 2015
हस्त मुद्राएं
योग साधना में अष्टांगो के आलावा हस्त मुद्राओं का भी विशेष महत्व है। मुद्राएं आसनो का विकसित रूप है। हस्त मुद्राओं में इन्द्रियों की गौणता और प्राणो की प्रधानता होती है। इस पृथ्वी पर मुद्रा के समान सफलता देने वाला अन्य कोई कर्म नहीं है। मुद्राएं दो प्रकार की है :१. तत्वों का नियमन करने वाली हस्त मुद्राएं २. प्राणोत्थान व् कुण्डलिनी जागरण में सहायक मुद्राएँ
तत्वों का नियमन करने वाली हस्त मुद्राएं
यह समस्त ब्रह्माण्ड पंचतत्वों से निर्मीत है। हमारा देह भी पंच तत्वों का संघात है। शरीर की पांच अंगुलियाँ इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। अंगुष्ठ अग्नि का ,तर्जनी वायुका,मध्यमा आकाश का ,अनामिका पृथ्वीका का तथा कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। मुद्रा के अनुसार इन्ही पांच तत्वों के समन्वय से शरीर कि आंतरिक ग्रंथियों,अवयवो तथा उनकी क्रियाओं नियमित किया जाता है तथा शरीर की सुषुप्त शक्तियों को जागृत किया जाता है।
हस्त मुद्राएं तत्काल ही असर करना शरू कर देती है। जिस हाथमें ये मुद्राएं बनाते है , शरीर के विपरीत भाग में उनका तुरंत असर होना शरू हो जाता है। ये मुद्राएं किसी भी तरह कर सकते है। वज्रासन,सुखासन अथवा पद्मासन में बैठकर करना अधिक लाभ मिलता है। इन मुद्राओ को १० मिनिट से शरू करके ३० से ४५ मिनिट तक करने से पूर्ण लाभ मिलता है।
हस्त मुद्राएं तत्काल ही असर करना शरू कर देती है। जिस हाथमें ये मुद्राएं बनाते है , शरीर के विपरीत भाग में उनका तुरंत असर होना शरू हो जाता है। ये मुद्राएं किसी भी तरह कर सकते है। वज्रासन,सुखासन अथवा पद्मासन में बैठकर करना अधिक लाभ मिलता है। इन मुद्राओ को १० मिनिट से शरू करके ३० से ४५ मिनिट तक करने से पूर्ण लाभ मिलता है।
ज्ञान मुद्रा(Gyan mudra)
ज्ञान मुद्रा या ध्यान मुद्रा : अंगुष्ठ एवं तर्जनी अंगुली के अग्रभागों के परस्पर मिलाकर शेष तीनों अँगुलियों को सीधा रखना होता है।
Tuesday, February 17, 2015
शशकासन (Shashankasana)
विधिः
१. वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों को श्वास भरते हुए ऊपर उठाइये।
२. आगे झुकते हुए श्वास बाहर निकालें तथा हाथों को आगे फैलाते हुए हथेलियां निचे की और रखते हुए कोहनियों तक हाथों को भूमि पर टका दीजिये। माथा भी भूमि पर टिका हुवा हो।
३. कुछ समय इस स्थिति में रहकर पुनः वज्रासन में आ जाइए।
हदय की मालिश करता है इस लिए हदय रोगो में लाभकारी है
आँत(Intestine),यकृत(liver),अग्नाशय(pancreas) एवंगुर्दो(kidneys) को बल प्रदान करता है। मानसिक रोग(Mentalillnes),
तनाव(stress),क्रोध(anger),चिड़चिड़ापन(irritability),गुस्सा आदि रोगो को दूर करता है। गर्भाशय(uterus) को बल देता एवं पेट(abdomen),कमर की चर्बी को काम करता है।
Friday, February 13, 2015
सुप्तवज्रासन (Supt Vajrasana)
विधिः
१. वज्रासन में बैठकर हाथों को पाश्व भाग में रखकर उनकी सहायता से शरीर को पीछे झुकाते हुए भूमि पर सर को टिका दीजिये। घुटने मिले हुए हों तथा भूमि पर ठीके हुए हों।
२. धीरे-धीरे कंधो,ग्रीवा एवं पीठ को भूमि पर टिकाने का प्रयत्न कीजिये। हाथों को जंघाओं पर सीधा रखे।
३. आसन को छोड़ते समय कोहनियों एवं हाथों का सहारा लेते हुये वज्रासन में बैठ जाइए।
लाभ:
१. इस आसन से पेट के निचे वाला भाग खींचता है जिससे बड़ी आंत सक्रीय होने से कोष्ठबद्धता मिटती है।
२. नाभि का टलना दूर करता है , गुर्दो के लिए भी लाभप्रद है।
Friday, February 6, 2015
Tuesday, February 3, 2015
घुटनो के दर्द के लिए योग (Asan for knee Pain)
हम सभी जानते है ,घुटने के दर्द दुनिया भर के बच्चो को और वयस्कों में पाया जाता है ,जो एक आम बीमारी है। असल में घुटने की बीमारी उम्र के साथ बढ़ती है।घुटने के दर्द में हम दवा से पहले के स्तर में घरेलु उपचार का उपयोग करते है ,लेकिन कभी कभी आपको चलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है इस रूप में परामर्श चिकित्सक आवश्यक होगा।
जोड़ो के पुराने दर्द के इलाज के लिए योग बहुत विशेष रूप से लाभदाई है। घुटने के दर्द के लिये सकारात्मक परिणाम के लिए दिए गए आसन क्रमशः करना जरुरी है। घुटने के लिए विशेष रूप से जो आसन दिए गए है, जैसे के ताड़ासन(Tadasana),मकरासन (Makrasana),वीरासन(Veerasana),त्रिकोणासन (Trikonasana).
ताड़ासन(Tadasana)
विधिः
पूर्ववत् खड़े होकर दोनों हाथो को पाश्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाए। जैसे जैसे हाथ ऊपर उठे वैसे वैसे ही पैर की एड़िया भी उठी रहनी चाहिए। शरीर का भार पंजो पर रहेगा एवं शरीर ऊपर की ओर पूरी तराह से तना होगा।
लाभ
यह आसन घुटनो के स्नायु को मजबूत करता है ,यह आसान कद वृद्धि के लिए सर्वोत्तम है। इससे समस्त शरीर के स्नायु ओ को सक्रीय एवं विकसित करता है।
मकरासन(Makrasana)
विधिः
पेट के बल लेट जाइए। दोनों हाथ को कोहनियों को मिलाकर स्टैंड बनाते हुए हथेलियों को ठोडी के निचे लगाइए। छाती को ऊपर उठाइए। कोहनियों एवं पैरों को मिलाकर रखें।
१. स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) एवं सियाटिका(SIYATIKA) दर्द मैं विशेष उपयोगी है।
२. अस्थमा(Asthma) व् फेफड़े(Lung) सम्बन्धी किसी भी विकार तथा घुटनों(knee) के दर्द के लिए लाभकारी है।
वीरासन(Veerasana)
विधिः
१. समतल भूमि पर नरम आसन बिछाकर वज्रासन की स्थिति में बैठ जाएं।
२. अब दोनों पैरो को थोड़ा फैलायें और हिप्स को भी भूमि पर टीकाकार सीधे में रखे।
३. अब दोनों हाथों को घुटनो पर सीधा तानकर रखें।
४. कंधो को आराम की मुद्रा में रखे और तनकर बैठे। सिर को सीधा रखें और सामने की और देखे।
लाभ:
जंघा और पावं शक्तिशाली बनते है। शरीर का भारीपन दूर होता है। वीरासन योग में जंघाओं,घुटनो,पैरों एवं कोहनियो को आराम मिलता है। शरीर को सुडोल बनायें रखने के लिए ये योग उपयोगी है।
त्रिकोणासन(TRIKONASANA)
विधिः १. दोनों पैरो के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हाथ कंधो के समानान्तर पाश्व भाग मे खुले हुए हों।
२. श्वास अन्दर भरते हुए बाएं हाथ को सामने से लेते हुए बाएं पंजे के पास भूमि पर टिका दें अथवा पंजे को एड़ी का पास लगायें तथा दाएं हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दाए ओर घुमाते हुए दाए हाथ को देखें ,फिर श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर इस तरह अभ्यास को बार बार करें।
लाभ: घुटनो को आराम मिलता है और कटी प्रदेश लचीला बनता है। पाश्वा भाग की चर्बी को कम करता है। छाती का विकास होता है।
Monday, February 2, 2015
हेल्थ टिप फॉर पाचन- (Helth Tip Digestion)
खाना खाने के बाद पेट मे खाना पचेगा या खाना सड़ेगा ये जानना बहुत जरुरी है ...हमने रोटी खाई,हमने दाल खाई,हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया लस्सी पी ,दूध,दही छाझ लस्सी फल आदि|,ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण कियाये सब कुछ
हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है |पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहतेहै"अमाशय"उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"|उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है"epigastrium "|ये एक थेली की तरह होता हैऔर यह जठर हमारे शरीर मे सबसेमहत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।ये बहुत छोटा सा स्थान हैं इसमें अधिक से अधिक 350 GMS खाना आ सकता है |हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है|आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"।|ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त
होने वाली आग है ।ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी |यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है |अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया|और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है |अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी|आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,एक क्रिया है जिसको हम
कहते हे"Digestion" और दूसरी है "fermentation"फर्मेंटेशन का मतलब है सडना और डायजेशन का मतलब हे पचना|आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा|ये तभी होगा जब खाना पचेगा|यह सब हमें चाहिए|ये तो हुई खाना पचने की बातअब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid )|कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो|और एक दूसरा उदाहरण खाना जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे LDL (Low Density lipoprotive) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )|जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP )हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ?तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष हे वो है VLDL (Very Low Density lipoprotive)|
ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides| जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये विष हे और ऐसे विष 103 है |ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है ,कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है |कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है |क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता|खाना पचने पर जो बनता है वो है
मांस,मज्जा,रक्त ,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल,LDL-VLDL|और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है *जिसे आप heart attack कहते हैं !तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है |आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे।खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!"भोजनान्ते विषं वारी"
--------------- (मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है ) * इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!*अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??बात ऐसी है !
जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं है !पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है !उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !
(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है )पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है !तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं ।तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !!जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले)
उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने लगता है उनको घंटे बादपानी पीना चाहिए !अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ???? बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है !तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !पानी ना पीये खाना खाने के बाद।इसका जरूर पालण करे !
हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है |पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहतेहै"अमाशय"उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"|उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है"epigastrium "|ये एक थेली की तरह होता हैऔर यह जठर हमारे शरीर मे सबसेमहत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।ये बहुत छोटा सा स्थान हैं इसमें अधिक से अधिक 350 GMS खाना आ सकता है |हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है|आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"।|ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त
होने वाली आग है ।ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी |यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है |अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया|और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है |अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी|आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,एक क्रिया है जिसको हम
कहते हे"Digestion" और दूसरी है "fermentation"फर्मेंटेशन का मतलब है सडना और डायजेशन का मतलब हे पचना|आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा|ये तभी होगा जब खाना पचेगा|यह सब हमें चाहिए|ये तो हुई खाना पचने की बातअब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid )|कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो|और एक दूसरा उदाहरण खाना जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे LDL (Low Density lipoprotive) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )|जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP )हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ?तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष हे वो है VLDL (Very Low Density lipoprotive)|
ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides| जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये विष हे और ऐसे विष 103 है |ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है ,कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है |कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है |क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता|खाना पचने पर जो बनता है वो है
मांस,मज्जा,रक्त ,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल,LDL-VLDL|और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है *जिसे आप heart attack कहते हैं !तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है |आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे।खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!"भोजनान्ते विषं वारी"
--------------- (मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है ) * इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!*अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??बात ऐसी है !
जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं है !पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है !उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !
(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है )पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है !तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं ।तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !!जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले)
उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने लगता है उनको घंटे बादपानी पीना चाहिए !अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ???? बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है !तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !पानी ना पीये खाना खाने के बाद।इसका जरूर पालण करे !
वीरासन(Veerasana)
विधिः
१. समतल भूमि पर नरम आसन बिछाकर वज्रासन की स्थिति में बैठ जाएं।
२. अब दोनों पैरो को थोड़ा फैलायें और हिप्स को भी भूमि पर टीकाकार सीधे में रखे।
३. अब दोनों हाथों को घुटनो पर सीधा तानकर रखें।
४. कंधो को आराम की मुद्रा में रखे और तनकर बैठे। सिर को सीधा रखें और सामने की और देखे।
लाभ:
जंघा और पावं शक्तिशाली बनते है। शरीर का भारीपन दूर होता है। वीरासन योग में जंघाओं,घुटनो,पैरों एवं कोहनियो को आराम मिलता है। शरीर को सुडोल बनायें रखने के लिए ये योग उपयोगी है।
ताड़ासन(Tadasana)
विधिः
पूर्ववत् खड़े होकर दोनों हाथो को पाश्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाए। जैसे जैसे हाथ ऊपर उठे वैसे वैसे ही पैर की एड़िया भी उठी रहनी चाहिए। शरीर का भार पंजो पर रहेगा एवं शरीर ऊपर की ओर पूरी तराह से तना होगा।
लाभ
यह आसन घुटनो के स्नायु को मजबूत करता है ,यह आसान कद वृद्धि के लिए सर्वोत्तम है। इससे समस्त शरीर के स्नायु ओ को सक्रीय एवं विकसित करता है।
Sunday, February 1, 2015
Exercise Workout Two
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