Wednesday, December 31, 2014

कमर दर्द(मेरुदंड आदि)(Spinal Cord Disease)

        यहां जो भी आसन का वर्णन करेंगे वे सभी आसन कमर दर्द ,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) एवं कमरदर्द मेरुदंड से सम्बंधित सभी रोगो को दूर करने के लिए उपयोगी है। 

सावधानियां :-
       जिन आसनों में पेट अधिक बल पड़ता है उन आसनों को अल्सर,आंत्र टी.बि.,हर्निया ,यकृत(liver) रोगी न करें। 


चक्रासन(Chakrasan)
विधिः 
१.      पीठ के बल लेट कर घुटनों को मोड़िए। एड़ियां नितम्बों के समीप लगी हुई हों।
२.     दोनों हाथों को उल्टा करके कंधो के पीछे थोड़े अंतर पर रखें। 
३.     श्वास अन्दर भरकर कटिप्रदेश एवं छाती को ऊपर उठाइये। 
४.     धीरे-धीरे हाथ एवं पैरों को समीप लाने का प्रयत्न करें।
५.     आसान छोड़ते शरीर को ढीला करते हुए कमर भुनी पर टिका दें। इस प्रकार ये आसन ३-४ बार करें।      



लाभ:
      रीड की हड्डी को लचीला बनाकर वृद्धावस्था नहीं आने देता। शरीर में स्फूर्ति,शक्ति एवं जठर,आंतो को सक्रीय करता है। कटिपिडा,श्वास रोग(Dyspnea), सिरदर्द(Headache), नेत्र विकारों(eye disorders)सर्वाइकल व् स्पोंडोलाइटिस में विशेष लाभकारी है। हठपैरों की मासपेशियों को सबल बनाता है। महिलाओं के गर्भाशय के विकारों को दूर
करता है। 


सेतुबन्ध आसन(Setubandh Asan)

१.     सीधे लेट जाइए। दोनों घुटनों को मोड़कर रखिए।  कटिप्रदेश को ऊपर उठाकर दोनों हाथों को कोहनी के बल खड़े करके कमर के निचे लगाइए। 
२.     अब कटी को ऊपर स्थिर रखते हुए पैरो को सीधा कीजिए। कंधे एवं सर भूमि पर ठीके रहें। 




३.     वापस आते समय नितम्ब एवं पैरो को धीरे-धीरे जमीं पर टेकिए। हाथों को एकदम कमर से नहीं हटाइए। इस आसान को ४-५ बार किया जा सकता है। 
लाभ:
         स्लिप डिस्क,कमर एवं ग्रीवा-पीड़ा व् उदर रोगो में विशेष लाभप्रद है।


मर्कटासन-१ (Markatasan-1)
१.     सीधे लेटकर दोनों हाथों को कंधों के साथ समानान्तर फैलाइए। हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों। फिर दोनों पैरों को घुटनो से मोड़कर
नितम्ब के पास रखें।
२.     अब घुटनों को दाएं ओर जुकाते हुए दाएं घुटने को भूमि पर टिका दें। बायां घुटना दाएं घुटने पर टिका हुआ हो तथा दाएं पैर की एड़ी पर बाएं पैर की एड़ी टिकी हुए हों। गर्दन को बाई ओर घुमाकर रखें। इसी तरह से बाई और से भी आसन करें। 



लाभ :
         कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) में विशेष लाभकारी हैं। पेटदर्द(Abdominal pain),दस्त(diarrhea),कब्ज(constipation) एवं गैस को दूर करता है। नितम्ब(hip), जोड़ो(joint) के दर्द में लाभकारी है। 


मर्कटासन(Markatasan)-२ 
विधिः 
१.     सीधे लेटकर दोनों हाथों को कंधों के साथ समानान्तर फैलाइए। हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों।दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर नितम्बों के पास रखें। पैरों में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर हो। 
२.     दायें घुटनो को दाए और जुकाते हुए भूमि पर टिका दें। इतना झुकाइए की बायां घुटना दाएं पंजे के पास पहुंच जाये तथा बाएं घुटने को भी दाई ओर दाएं घुटने के पास भूमि पर टिका दीजिए। गर्दन को बाई ओर मोड़कर रखें। इस तरह दूसरे पैर से भी करें। 


लाभ :
         कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) में विशेष लाभकारी हैं। पेटदर्द(Abdominal pain),दस्त(diarrhea),कब्ज(constipation) एवं गैस को दूर करता है। नितम्ब(hip), जोड़ो(joint) के दर्द में लाभकारी है। 
मर्कटासन(Markatasan)-३ 
विधिः 
१.     सीधे लेट कर दोनों हाथों को कन्धों के  समानान्तर फैलाइए। हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों। 
२.     दायें पैर को १० डिग्री उठाकर धीरे-धीरे बाएं हाथ के पास ले जाये,गर्दन को दाई ओर मोड़कर रखिए। 
३.      कुछ समय इस स्थिति में रहने के बाद पैर को ९० डिग्री पर सीधे उठाकर धीरे-धीरे भूमि पर टिका दें। इसी तरह बाएं पैर से इस तरह आसन करें। 
४.    अंत में दोनों पैरों को एक साथ ९० डिग्री पर उठाकर बाई ओर हाथ के पास रखें। गर्दन को विपरीत दिशा में मोड़ते हुए दाइ ओर देखें कुछ समय पैरों को सीधा कीजिए।
५.      इसी तरह दोनों पैरों को उठा कर दाई ओर हाथ के पास रखें। गर्दन को बाई ओर मोड़ते हुए बाई और देखें। इस प्रकार ३-५ बार करें। 

लाभ : कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) में विशेष लाभकारी हैं। पेटदर्द(Abdominal pain),दस्त(diarrhea),कब्ज(constipation) एवं गैस को दूर करता है। नितम्ब(hip), जोड़ो(joint) के दर्द में लाभकारी है। 

कटी उत्तानासन(Kati Utanasan)
विधिः 
१.     शवासन में लेट कर दोनों पैरों को मोड़कर रखकें। दोनों हाथ दोनों ओर पाश्व मैं फैलाकर रखें। 
२.     श्वास अन्दर भरते हुए पीठ को ऊपर की ओर खींचे। नितम्ब तथा छोड़ते हुए पीठ को निचे भूमि पर दबाकर पूरा सीधा कर दें। इस प्रकार यह अभ्यास ८-१० बार करें। 


Heena-asana-pranayam

लाभ:  
        स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) एवं कमर दर्द मैं विशेष उपयोगी है। 


मकरासन(Makrasana)
१.     पेट के बल लेट जाइए। दोनों हाथ को कोहनियों को मिलाकर स्टैंड  बनाते हुए हथेलियों को ठोडी के निचे लगाइए। छाती को ऊपर उठाइए। कोहनियों एवं पैरों को मिलाकर रखें। 


अब श्वास भरते हुए पैरो को क्रमशः पहले एक-एक तथा बाद में दोनों पैरों को एक साथ मोड़ना है। मोड़ते समय पैरो को एड़ियां नितम्ब से स्पेर्श करें। श्वास बाहर निकालते हुए पैरों को सीधा करें। इस प्रकार से ये आसान २०-२५ बार करें। 



लाभ:
१.     स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) एवं सियाटिका(SIYATIKA)  दर्द मैं विशेष उपयोगी है।
२.     अस्थमा(Asthma) व् फेफड़े(Lung) सम्बन्धी किसी भी विकार तथा घुटनों(knee) के दर्द के लिए लाभकारी है। 


भुजंगासन(Bhujangasana)

विधिः 
१.     पेट के बल लेट जाइए। हाथों की हथेलियाँ भूमि पर रखते हुए हाथों को छाती के दोनों ओर रखें। कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजाएं छाती से सटी हुई हिनी चाहिए। 
२.     पैर सीधे तथा पंजे आपस में मिले हुए हों। पंजे पीछे की ओर तने हुये भूमि पर ठीके हुए हों। 
३.     श्वास अन्दर भरकर छाती एवं सर को धीरे-धीरे ऊपर उठाइए। नाभि के पीछे वाला भाग भूमि पर टिका रहे। सर को ऊपर उठाते हुये ग्रीवा को जितना पीछे की ओर मोड़ सकते हैं, मोड़ना चाहिए। इस स्थिति में करीब ३० सेकंड रहना चाहिए। 
४.     इस प्रकार ये आसन  यथाशक्ति करें। 
लाभ: 
   कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 


धनुरासन (Dhanurasan)


विधिः 
१.     पेट के बल लेट जाइए। घुटनों से पैरों को मोड़ कर एड़ियां नितम्ब के ऊपर रखें। घुटने एवं पंजे आपस में मिले हुए हों। 
२.     दोनों हाथों से पैरों के पास से पकड़िये। 
३.     श्वास को अन्दर भरकर  घुटनों एवं जंघावो को एक के बाद एक उठाते हुये ऊपर की ऑर तने , हाथ सीधे रहें। पिछले हिस्से को उठाने  के बाद पेट के ऊपरी भाग छाती,ग्रीवा एवं सर को भी ऊपर उठाइए। नाभि एवं पेट के आसपास का भाग भूमि पर ही टिके रहे। शेष भाग ऊपर उठा होना चाहिए। शरीर की आकृति धनुष के समान हो जाएगी। इस स्थिति में १० से २५ सेकंड तक रहें। 
४.     श्वास छोड़ते हुए क्रमशः पूर्व स्थिति में आ जाइए। श्वास-पश्वास के सामान्य होने पर ३ - ४  बार करे।   



लाभ: 
नाभि का टलना दूर होता है। स्त्रियों की मासिक धर्म(menstrual) सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है।कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 

 











Monday, December 29, 2014

बवासीर के लिए योग(Yoga for Piles)

      इस योग उपचार के लिए मरीज को पेट साफ करके ही योग करे। लम्बे समय के लिए एक स्थान पर न बैठे। छोटे अंतराल पर चलने से लाभदाई रहेंगा। 

      नियमित रूप से वज्रासन,सिद्धासन,गुप्तासन,गोमुखासन ,हलासन का अभ्यास फायदेमंद रहेगा। इस रोगी को अश्विनी मुद्रा,मूलबंध,नाड़ी शोधन और शीतली प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। 


गोमुखासन(Gomukhasana) 


विधि:
 १.     दण्डासन में बैठकर बाएँ पैर को मोड़कर एड़ी को दाएँ नितम्ब के पास रखें अथवा एड़ी पर बैठ भी सकते हैं। 

२.     दाएँ पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने एक दूसरे से स्पर्श करते हुए हों। 

३.     दायें हाथ को ऊपर पीठ की और मोड़िए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे से लेकर दायें हाथ को पकड़िए। गर्दन एवं कमर सीधी रखें। 

४.     एक और करने के बाद विश्राम करके दूसरी ऑर इसी प्रकार करें। 





लाभ: 

            धातु रोग,बहुमूत्र एवं स्त्री रोग में लाभदायी है। अंडकोषवृद्धि एवं आंत्रवृद्धि  तथा

यकृत,गुर्दे  वक्षस्थल को बल देता है। संधिवात एवं गठिया को दूर करता है। 


सिद्धासन(SIDDHASANA)


१.     दण्डासन में बैठकर बाएं पैरको मोड़ कर एड़ी को सिवनी पर लगायें। दाहिने पैर की एड़ी

को उपस्थेंन्द्रिय के ऊपर वाले भाग पर स्थिर करें। बायें पैर के टखने पर दायें पैर का टखना होना चाहिये। पैरो के पंजे। जंघा और पिण्डली के मध्य रहें। 

२.     घुटने जमीन पर ठीके हुए हों। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा की स्थिति में घुटने पर ठीके हुये हों। मेरुदण्ड सीधा रहे। ऑंखें बन्द करके मन को एकाग्र करें। 



लाभ: 
        बवासीर तथा यौन रोगो के लिए लाभदाए है। काम वेग को शांत करके मन को शांति प्रदान करता है। सिद्धो द्वारा सेवित होने से इसका नाम सिद्धासन है।

 

हलासन(Halasan) 

विधि:

१.     पीठ के बल लेट जायें,अब श्वास अंदर भरते हुए धीरे से पैरो को उठाये। पहले ३०,६० डिग्री फिर ९० डिग्री तक उठाने के बाद पैरो को सीर के पीछे की और पीठ को भी ऊपर उठाते हुए श्वास को बहार निकालते हुए ले जाये। 

२.     पैरो को सर के पीछे भूमि पर टिका दें। प्रारम्भ में हाथो को कमर के पीछे लगा दे। पूरी स्थिति में हाथ भूमि पर ही रखे,इस स्थिति में ३० सेकंड रखे। 


३.     वापस जिस क्रम से ऊपर आए थे उसी क्रम से भूमि को हथेलियों को दबाते हुए पैरो को घुटनो से सीधा रखते हुए भूमि प्रर रखे। 

 



लाभ :

१.     थाइराइड ग्रंथि को चुस्त और मोटापा,दुर्बलता आदि को दूर करता है। 

२.    मेरुदण्ड को स्वस्थ,लचीला बना कर पृष्ठ भाग की मास  पेशियों को निरोगी बनता है। 

३.   गैस, कब्ज,डायबिटीस,यकृत-वृद्धि एवं हदय रोग में लाभकारी है। 

सावधानियाँ :

१.   उच्च रक्तचाप,स्लिपडिस्क,सर्वाइकल, टी.बि. आदि मेरुदण्ड के रोगी इस आसान को ना करे।  

Sunday, December 28, 2014

यौन समस्या के लिए योग(Yoga For Sexual)


        पुरुषो ओर महिलाओं दोनों में कामेच्छा में कमी,तनाव और चिंता, स्तंभन दोष और पुरूषों में शीघ्रपतन की किसी भी तरह-तरह की यौन समस्याओं से संभोग करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। जहा महिलाओ में कुछ संकीर्ण योन से पीड़ित हो सकता है। 

     
      योग, पुरुषों और महिलाओं दोनों में उचित यौन प्रदशन को बनाए रखने के लिए बहुत उपयोगी हे  और कामेच्छा बढ़ाने के लिए उचित श्रेणी शक्ति देता है। 
     आमतौर पर मनोवैज्ञानिक  संबंधित समस्याओ को अच्छी तरह से योग और प्राणायाम से दूर किया जा सकती है। 
      यह सभी योग-प्राणायाम नियमित रूप से किया जा सकता है।

  धनुरासन,सर्वांगासन,हलासन ,सुर्यनमष्कार ये सभी उपयोगी आसन है उसके साथ प्राणायाम जैसे अनोलोम-विलोम ,भ्रामणिप्राणायाम ,मुला बन्दास उपयोगी है। 
     यह सभी योग-प्राणायाम नियमित रूप से किया जा सकता है। 

धनुरासन (Dhanurasan)

विधिः 
१.     पेट के बल लेट जाइए। घुटनों से पैरों को मोड़ कर एड़ियां नितम्ब के ऊपर रखें। घुटने एवं पंजे आपस में मिले हुए हों। 
२.     दोनों हाथों से पैरों के पास से पकड़िये। 
३.     श्वास को अन्दर भरकर  घुटनों एवं जंघावो को एक के बाद एक उठाते हुये ऊपर की ऑर तने , हाथ सीधे रहें। पिछले हिस्से को उठाने  के बाद पेट के ऊपरी भाग छाती,ग्रीवा एवं सर को भी ऊपर उठाइए। नाभि एवं पेट के आसपास का भाग भूमि पर ही टिके रहे। शेष भाग ऊपर उठा होना चाहिए। शरीर की आकृति धनुष के समान हो जाएगी। इस स्थिति में १० से २५ सेकंड तक रहें। 
४.     श्वास छोड़ते हुए क्रमशः पूर्व स्थिति में आ जाइए। श्वास-पश्वास के सामान्य होने पर ३ - ४  बार करे।   


लाभ: 
नाभि का टलना दूर होता है। स्त्रियों की मासिक धर्म(menstrual) सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है।कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 

हलासन(Halasan) 

विधि:

१.     पीठ के बल लेट जायें,अब श्वास अंदर भरते हुए धीरे से पैरो को उठाये। पहले ३०,६० डिग्री फिर ९० डिग्री तक उठाने के बाद पैरो को सीर के पीछे की और पीठ को भी ऊपर उठाते हुए श्वास को बहार निकालते हुए ले जाये। 

२.     पैरो को सर के पीछे भूमि पर टिका दें। प्रारम्भ में हाथो को कमर के पीछे लगा दे। पूरी स्थिति में हाथ भूमि पर ही रखे,इस स्थिति में ३० सेकंड रखे। 


३.     वापस जिस क्रम से ऊपर आए थे उसी क्रम से भूमि को हथेलियों को दबाते हुए पैरो को घुटनो से सीधा रखते हुए भूमि प्रर रखे। 

 

लाभ :

१.     थाइराइड ग्रंथि को चुस्त और मोटापा,दुर्बलता आदि को दूर करता है।
२.    मेरुदण्ड को स्वस्थ,लचीला बना कर पृष्ठ भाग की मास  पेशियों को निरोगी बनता है।
३.   गैस, कब्ज,डायबिटीस,यकृत-वृद्धि एवं हदय रोग में लाभकारी है।

सावधानियाँ :

   उच्च रक्तचाप,स्लिपडिस्क,सर्वाइकल, टी.बि. आदि मेरुदण्ड के रोगी इस आसान को ना करे।  


सर्वांगासन(Sarvangasan)

विधि :


१.  पीठ के बल सीधा लेट जाये।  पैर जोड़ के रखे,हाथो को दोनों और बगल में सटाकर हथेलियाँ जमीं की ओर करके रखे.

२. स्वास अंदर भरकर पैरो को धीरे धीरे ३० डिग्री , फिर ६० डिग्री  और अंत में ९० डिग्री  तक उठाए।पैरो को उठाते समय हाथो का सहारा ले। यदि  पैर सीधा न हो तो हाथो को उठाकर  कमर के पीछे रखे। पैरो को सीधा मिलाकर रखे और कोहनियाँ भूमि पर टिकी हुए रखे। आँखे बंद एवं पंजे ऊपर तने हुए रखे। धीरे -धीरे ये आसान २ मिनिट से शरू करके आधे घंटे तक करने कोशिश करे।

३. वापस आते समय जिस क्रम से उठे थे उसी क्रम से धीरे धीरे वापस आये। जितने समय तक सर्वांगासन किया जाये उतने ही समय शवाशन में विश्राम करे।


लाभ :

१.  मोटापा ,दुर्बलता,कदवृद्धि में लाभ मिलते है ,एवं थकान आदि विकार       दूर होते है।
२. इस आसन से थाइरोड को सक्रीय एवं पिच्युरेटी ग्लैड के क्रियाशील होने    से यह कद वृद्धि में उपयोगी है। 

Saturday, December 27, 2014

गर्भवती महिला(PREGNANT WOMAN)

गर्भ(PREGNANT WOMAN) के दरमियान वजन बढ़ता है, वजन कम करने के सरल आसन और योग जैसे की वज्रासन,पश्चिमोत्तनासन ,भुजंगासन,त्रिकोणासन और प्रणायाम किया जा सकता है।

त्रिकोणासन(TRIKONASNA)

१.     दोनों पैरो के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हाथ कंधो के समानान्तर पाश्व भाग मे खुले हुए हों। 

२.     श्वास अन्दर भरते हुए बाएं हाथ को सामने से लेते हुए बाएं पंजे के पास भूमि पर टिका दें अथवा पंजे को एड़ी का पास लगायें तथा दाएं हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दाए ओर घुमाते हुए दाए हाथ को देखें ,फिर श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर इस तरह अभ्यास को बार बार करें। 


लाभ:    कटी प्रदेश लचीला बनता है। पाश्वा भाग की चर्बी को काम करता है। छाती का विकास होता है। 

वज्रासन(VAJRASAN)


विधिः 
१.      दोनों पैरों को मोड़कर नितम्ब के निचे इस प्रकार रखें  एड़ियाँ बहार की ओर निकली हुई तथा पंजे नितम्ब से लगे हुए हो।

२.      इस स्थिति में पैरों के अंगूठे एक दूसरे से लगे हुए होंगें। कमर,ग्रीवा एवं सिर सीधे रहें। घुटने मिले हुए हों। हाथों को घुटनों पर रखें।




लाभ:

      भोजन के करने के बाद किया जानेवाला यह एक मात्र आसन है। यह आसन करने से अपचन ,अम्लपित्त,गैस,कब्ज के लिए लाभकारी है। भोजन के बाद ५ से १५ मिनिट तक करने से भोजन का पाचन ठीक से होता है। ये आसन  घुटनो की पीड़ा में लाभदाई है। 


भुजंगासन(Bhujangasana)


विधिः 

१.     पेट के बल लेट जाइए। हाथों की हथेलियाँ भूमि पर रखते हुए हाथों को छाती के दोनों ओर रखें। कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजाएं छाती से सटी हुई हिनी चाहिए। 

२.     पैर सीधे तथा पंजे आपस में मिले हुए हों। पंजे पीछे की ओर तने हुये भूमि पर ठीके हुए हों। 

३.     श्वास अन्दर भरकर छाती एवं सर को धीरे-धीरे ऊपर उठाइए। नाभि के पीछे वाला भाग भूमि पर टिका रहे। सर को ऊपर उठाते हुये ग्रीवा को जितना पीछे की ओर मोड़ सकते हैं, मोड़ना चाहिए। इस स्थिति में करीब ३० सेकंड रहना चाहिए। 


४.     इस प्रकार ये आसन  यथाशक्ति करें। 

लाभ: 

   कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 

पश्चिमोत्तनासन(PASCHIMOTANASNA)


विधिः 

१.     दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये। 

२.     श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।



                                                                                              
  
                          
 लाभ: 

     पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है। 

    


पश्चिमोत्तनासन(PASCHIMOTANASNA)



विधिः 
१.     दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये। 

२.     श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।


 
                                                                                              
  
                           लाभ: 

     पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है। 

वीडियो देखे:

भुजंगासन(Bhujangasana)



विधिः 

१.     पेट के बल लेट जाइए। हाथों की हथेलियाँ भूमि पर रखते हुए हाथों को छाती के दोनों ओर रखें। कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजाएं छाती से सटी हुई हिनी चाहिए। 

२.     पैर सीधे तथा पंजे आपस में मिले हुए हों। पंजे पीछे की ओर तने हुये भूमि पर ठीके हुए हों। 

३.     श्वास अन्दर भरकर छाती एवं सर को धीरे-धीरे ऊपर उठाइए। नाभि के पीछे वाला भाग भूमि पर टिका रहे। सर को ऊपर उठाते हुये ग्रीवा को जितना पीछे की ओर मोड़ सकते हैं, मोड़ना चाहिए। इस स्थिति में करीब ३० सेकंड रहना चाहिए। 


४.     इस प्रकार ये आसन  यथाशक्ति करें। 

लाभ: 

   कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 

Friday, December 26, 2014

त्रिकोणासन(TRIKONASNA)

त्रिकोणासन(TRIKONASANA)

१.     दोनों पैरो के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हाथ कंधो के समानान्तर पाश्व भाग मे खुले हुए हों। 
२.     श्वास अन्दर भरते हुए बाएं हाथ को सामने से लेते हुए बाएं पंजे के पास भूमि पर टिका दें अथवा पंजे को एड़ी का पास लगायें तथा दाएं हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दाए ओर घुमाते हुए दाए हाथ को देखें ,फिर श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर इस तरह अभ्यास को बार बार करें। 


लाभ:    कटी प्रदेश लचीला बनता है। पाश्वा भाग की चर्बी को कम करता है। छाती का विकास होता है। 

वीडियो देखे :TRIKONASANA

पेट के लिए आसन(STOMACH)

अपचन ,गॅस  पेट में गड़बड़ी जैसे रोग आज कल काफी लोगो में देखा जाता है। इस का मुख्य  कारण  है अनियमित खाना और झँखफूड है। इस रोगो मे आप  के लिए मदद कर सकते है जो योग और आसन के सुजाव है।पवनमुक्तासन ,सूर्यनमस्कार,मकरासन,सर्वांगासन,हलासन,भुजंगासन,कटिचक्रासन, और कुछ प्राणायम ,नाड़ीशोधन प्राणायाम ,बन्ध्याकुम्भक उडियनबंध ,भस्त्रिकप्रणायम। 

पवन मुक्तासन (Pawanmuktasan)

विधि:
१.      सीधे लेट कर दाये  पैर के घुटने को छाती पर रखे।
२.      दोनों हाथो को,अंगुलियों एक दूसरे में सड़ते हुए घुटने पर रखे ,श्वास बाहर निकलते हुए घुटने को दबाकर छाती से लगाये एवं सर को उठाते हुए घुटने से नासिका स्पर्श करे,करीब १० से ३० सेकंड तक श्वास को बाहर रोकते हुए इस स्थिति में रहकर फिर पैर को सीधा कर दे।


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

      


   ३.       इसी तराह दूसरे पैर से करे। फिर दोनों पैरो से एक साथ करे। इस प्रकार ३ से ५ बरी करे। 
४.      दोनों पैरो को पकड़ के शरीर को आगे-पीछे-दये-बाये लुढ़काए।





लाभ:   
१.     ये आसन वायुविकार ,स्त्री रोग अल्पावर्त,कष्टार्त्तव एवं गर्भाशय सम्बन्धी रोगो के लिए लाभदायी है। 

    २.     मोटापा,अम्लपित्त,हदयरोग,गठिया एवं कटी पीड़ा में लाभदायी है।


हलासन(Halasan) 

विधि:

१.     पीठ के बल लेट जायें,अब श्वास अंदर भरते हुए धीरे से पैरो को उठाये। पहले ३०,६० डिग्री फिर ९० डिग्री तक उठाने के बाद पैरो को सीर के पीछे की और पीठ को भी ऊपर उठाते हुए श्वास को बहार निकालते हुए ले जाये। 

२.     पैरो को सर के पीछे भूमि पर टिका दें। प्रारम्भ में हाथो को कमर के पीछे लगा दे। पूरी स्थिति में हाथ भूमि पर ही रखे,इस स्थिति में ३० सेकंड रखे। 


३.     वापस जिस क्रम से ऊपर आए थे उसी क्रम से भूमि को हथेलियों को दबाते हुए पैरो को घुटनो से सीधा रखते हुए भूमि प्रर रखे। 

 

लाभ :

१.     थाइराइड ग्रंथि को चुस्त और मोटापा,दुर्बलता आदि को दूर करता है। 
२.    मेरुदण्ड को स्वस्थ,लचीला बना कर पृष्ठ भाग की मास  पेशियों को निरोगी बनता है। 
३.   गैस, कब्ज,डायबिटीस,यकृत-वृद्धि एवं हदय रोग में लाभकारी है। 

सावधानियाँ :

१.   उच्च रक्तचाप,स्लिपडिस्क,सर्वाइकल, टी.बि. आदि मेरुदण्ड के रोगी इस आसान को ना करे।  

मर्कटासन-१ (Markatasan-1)

१.     सीधे लेटकर दोनों हाथों को कंधों के साथ समानान्तर फैलाइए। हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों। फिर दोनों पैरों को घुटनो से मोड़कर
नितम्ब के पास रखें।

२.     अब घुटनों को दाएं ओर जुकाते हुए दाएं घुटने को भूमि पर टिका दें। बायां घुटना दाएं घुटने पर टिका हुआ हो तथा दाएं पैर की एड़ी पर बाएं पैर की एड़ी टिकी हुए हों। गर्दन को बाई ओर घुमाकर रखें। इसी तरह से बाई और से भी आसन करें। 




लाभ :
             कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) में विशेष लाभकारी हैं। पेटदर्द(Abdominal pain),दस्त(diarrhea),कब्ज(constipation) एवं गैस को दूर करता है। नितम्ब(hip), जोड़ो(joint) के दर्द में लाभकारी है। 

सर्वांगासन(Sarvangasan)
विधि :
१.  पीठ के बल सीधा लेट जाये।  पैर जोड़ के रखे,हाथो को दोनों और बगल में सटाकर हथेलियाँ जमीं की ओर करके रखे. 

२. स्वास अंदर भरकर पैरो को धीरे धीरे ३० डिग्री , फिर ६० डिग्री  और अंत में ९० डिग्री  तक उठाए।पैरो को उठाते समय हाथो का सहारा ले। यदि  पैर सीधा न हो तो हाथो को उठाकर  कमर के पीछे रखे। पैरो को सीधा मिलाकर रखे और कोहनियाँ भूमि पर टिकी हुए रखे। आँखे बंद एवं पंजे ऊपर तने हुए रखे। धीरे -धीरे ये आसान २ मिनिट से शरू करके आधे घंटे तक करने कोशिश करे। 


३. वापस आते समय जिस क्रम से उठे थे उसी क्रम से धीरे धीरे वापस आये। जितने समय तक सर्वांगासन किया जाये उतने ही समय शवाशन में विश्राम करे।  


लाभ :
१.  मोटापा ,दुर्बलता,कदवृद्धि में लाभ मिलते है ,एवं थकान आदि विकार       दूर होते है। 
२. इस आसन से थाइरोड को सक्रीय एवं पिच्युरेटी ग्लैड के क्रियाशील होने    से यह कद वृद्धि में उपयोगी है।