Sunday, December 21, 2014

सूर्यभेदी प्राणायाम(Surybhedi Pranayam)

१.     सूर्यभेदी प्राणायाम 

     ध्यानासन मैं बैठकर नासिका से पूरक करके तत्पश्वात् कुम्भक जालन्धर एवं मूलबन्ध के साथ करें ओर अन्त में बाए नासिका से रेचक करें। अंतः कुम्भक का समय धीरे-धीरे बढ़ाते रहिये। इस प्राणायाम को ३-७ से बढाकर १० तक बढ़ाइयें। ग्रीष्म ऋतु में इस प्राणायाम को अल्प मात्र में करें। 


लाभ: 
      शरीर में उष्णता तथा पिट कि वृद्धि होती है। वाट व् कफ(phlegm) से उत्पन होने वाले रोग ,रक्त व् त्वचा के दोष(skin defects) ,उदर-कृमि(stomach worms), कोढ़(leprosy),सुजाक,छूत के रोग,अजीर्ण,अपच(dyspepsia),स्त्री-रोग(gynecology) आदि में लाभदायक है। कुण्डलिनी जागरण में सहायक है। बुढ़ापा दूर रहता है। अनुलोम-विलोम के बाद थोड़ी मात्र मैं इस प्राणायाम को करना चाहिए। बिना कुम्भक के सूर्य भेदी प्राणायाम करने से हदयगति और शरीर की क्रियाशीलता बढ़ती है तथा वजन काम हो जाता है। इसके लिए इसके २७ चक्र दिन में २ बार करना जरुरी है। 
















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