अस्थमा के लक्षण अधिकतर रात में देखा जाना आम बात है ,उसे अस्थमा (Nocturnal Asthma) कहते है। अस्थमा होने का सचोट कारण और उपचार नहीं है। सामान्य दवाओं और साँस लेने के व्यायाम के साथ अस्थमा को नियंत्रित कर सकते हो। खाने में लहसुन, अदरक, तुलसी, हल्दी, काली मिर्च, शहद और गर्म सूप को शामिल करें।अपने वजन को नियंत्रित करें। कब्ज से बचे।
योगासन फायदेमंद रहता है जैसे पद्मासन,मत्स्यासन(Matsyasana),धनुरासन (Dhanurasana),भुजंगासन (Bhujangasana). फेफड़ों के लिए लिये प्राणायाम जैसे अनुलोमविलोम(Anuloma viloma) करें।
मत्स्यासन(MATSYASAN)
विधिः
१. पद्मासन में स्थिति मैं बैठकर हाथों से सहारा लेते हुये पीछे कोहनियाँ टीकाकार लेट जाइए।
२. हथेलियों को कंधे से पीछे टेककर उनसे सहारा लेते हुये ग्रीवा को जितना
पीछे मोड़ सकेते है मोड़िये। पीठ और छाती ऊपर उठी हुई तथा घुटने भूमि पर ठीके हुए हों।
३. हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ कर कोहनियों को भूमि पर टिकाइये। श्वास अन्दर भरकर
रखें।
लाभ :
१. पेट के लिये उत्तम आसान है। आंतो को सक्रिय करके कब्ज को दूर करता है।
२. थाइराइड ,पैरा थाइराइड एवं एड्रिनल को स्वस्थ बनाता है।
३. सर्वाइकल पेन या ग्रीवा की पीछे की हड्डी बढ़ी हुई होने पर लाभदायक है।
४. नाभि टालना दूर होता है। फेफड़ों के रोग दमा-श्वास आदि की दूर करता है।
भुजंगासन(Bhujangasana)
१. पेट के बल लेट जाइए। हाथों की हथेलियाँ भूमि पर रखते हुए हाथों को छाती के दोनों ओर रखें। कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजाएं छाती से सटी हुई हिनी चाहिए।
२. पैर सीधे तथा पंजे आपस में मिले हुए हों। पंजे पीछे की ओर तने हुये भूमि पर ठीके हुए हों।
३. श्वास अन्दर भरकर छाती एवं सर को धीरे-धीरे ऊपर उठाइए।
नाभि के पीछे वाला भाग भूमि पर टिका रहे। सर को ऊपर उठाते हुये ग्रीवा को जितना पीछे की ओर मोड़ सकते हैं, मोड़ना चाहिए। इस स्थिति में करीब ३० सेकंड रहना चाहिए।
लाभ:
कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है।
पद्मासन(Padmasan)
१. दण्डासन में बैठकर दाहिने पैर को बाये पैर की जंघा पर रखे। इसी प्रकार बायें पैर को दाहिने जंघे पर स्थिर करें। मेरुदण्ड सीधा रहे। सुविधानुसार बाएं पैर को दायें पैर की जंघा पर भी रख कर दायें पैर को बाएं जंघा पर स्थिर कर सकते है।
२. दोनों हाथों की अज्जलि बनाकर (बायाँ हाथ निचे दायां हाथ ऊपर) गोद में रखें। नासिकाग्र अथवा किसी एक स्थान पर मन को केंद्रित करके इष्ट देव परमात्मा का ध्यान करें।
३. प्रारम्भ में एक दो मिनिट तक करें। फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।
लाभ :
ध्यान के लिए उत्तम आसान है। मन की एकाग्रता व् प्राणोत्थान में सहायक है। जठरग्नि कप तीव्र करता है। वातव्याधि में लाभदायक हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम (ANULOM-VILOM PRANAYAM)
विधि:
अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बाए नासिका से प्रारम्भ करते है। अंगुष्ठ के माध्यम से दाहिनी नासिका को बंध करके बाई नाक से श्वास धीरे-धीरे अंदर भरना चाहिए। श्वास पूरा अंदर भरने पर ,अनामिका व् मध्यमा से वामश्वर को बन्ध करके दाहिनी नाक से पूरा श्वास बाहर छोड़ देना चाहिए। धीरे-धीरे श्वास-पश्वास की गति मध्यम और तीव्र करनी चाहिए। तीव्र गति से पूरी शक्ति के साथ श्वास अन्दर भरें व् बाहर निकाले व् अपनी शक्ति के अनुसार श्वास-प्रश्वास के साथ गति मन्द,मध्यम और तीव्र करें। तीव्र गति से पूरक, रेचक करने से प्राण की तेज ध्वनि होती है। श्वास पूरा बाहर निकलने पर वाम स्वर को बंद रखते हुए दाए नाक से श्वास पूरा अन्दर भरना चाहिए तथा अंदर पूरा भर जाने पर दाए नाक को बन्द करके बाए नासिका से श्वास बाहर छोड़ने चाहिए। यह एक प्रकियापुरी हुई। इस प्रकार इस विधि को सतत करते रहना। थकान होने पर बीच में थोड़ा विश्राम करे फिर पुनः प्राणायाम करे। इस प्रकार तीन मिनिट से प्रारम्भ करके इस प्राणायाम को १० मिनिट तक किया जा सकता है।
लाभ:
१. इस प्राणायम से बहत्तर करोड़,बहत्तर लाख,दस हजार दो सौ दस नाड़ियाँ परिशुद्ध हो जाती है।
२. संधिवात,कंपवात,गठिया,आमवात,स्नायु-दुर्बलता आदि समस्त वात रोग,धातुरोग,मूत्ररोग शुक्रक्षय ,अम्लपित्त ,शीतपित्त आदि समस्त पित्त रोग,सर्दी,जुकाम,पुराना नजला,साइनस,अस्थमा,खाँसी,टान्सिल समस्त रोग दूर होते है।
3. इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से तीन-चार माह में ३०% लेकर ५०% तक ब्लोकेज खुल जाते है। कोलेस्ट्रोल,एच. डी. एल. या एल. डी. एल. आदि की अनियमितताएं दूर हो जाती है। इस प्राणायाम से तन,मन,विचार छ संस्कार सब परिशुद्ध होते है।
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