विधिः
१. खड़े होकर दोनों हाथों को सामने भूमि पर लगभग ६ इंच की दुरी बनाकर टिकाइये।
२. शरीर का भार हाथों पे लेते हुए धीरे धीरे पैरो को भूमि से उठाकर आकाश में वृक्षवृत स्थिर कर दीजिए।
लाभ:
यह आसन शरीर में बल और वीर्य की वृद्धि करता है। नेत्र विकारो एवं कफ विकारों को दूर करता है। हदय एवं फेफड़ो में पर्याप्त मात्रा में रक्त पहुंचा कर उनको स्वस्थ बनाता है।
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